लेख-निबंध >> छोटे छोटे दुःख छोटे छोटे दुःखतसलीमा नसरीन
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जिंदगी की पर्त-पर्त में बिछी हुई उन दुःखों की दास्तान ही बटोर लाई हैं-लेखिका तसलीमा नसरीन ....
यह देश गुलाम आयम का देश है
जो देश, गुलाम आयम का देश है, वह देश मेरा नहीं हो सकता। मेघना, यमुना, पद्मा, ब्रह्मपुत्र का यह देश, मेरा नहीं है। यह देश गुलाम आयम का है। टेकनाक से तेंतुलिया तक...सारी जगहें उसकी हैं। गुलाम आयम अगर चाहे, तो अभी, इसी वक्त, वह देश का शाहंशाह बन सकता है। इस देश में गुलाम आयम रहता है, इस ख्याल से अब, मुझे हिकारत नहीं होती, बल्कि शर्म आती है। मैं अपने भाई-बहनों के सामने, युद्ध में ज़ख्मी मामा, खाला को अपना चेहरा नहीं दिखा पाती। मुझे लगता है, यह जो गुलाम आयम को वैधता मिल गई है, वह दोष मेरा है; यह शर्मिंदगी भी मेरी है। अब वह समूचे मुल्क भर में दनदनाता फिरेगा। उसकी मर्सिडीज़ हमारे बदन पर धूल या कीचड़ उड़ाती हुई गुज़र जाएगी और दूर से गुलाम के झनझनाते हुए ठहाके तैरते हुए हमारे कानों में गूंज उठेंगे। हम अपने-अपने सीनों में अपनी ही रुलाई सुनते रहेंगे। शिरीष, पलास, कृष्णचूड़ा भी काँपते सिहरते रो पड़ेंगे; पद्मा, मेघना, कर्णफूली, सुरमा रोएँगी, यमुना भी आँसू बहाएगी। गर्मी की लू-बरसाती हवा भी फूट-फूटकर रोएगी। हम किसी की भी रुलाई रोक नहीं पाएँगे।
इस देश में लोक अदालतों की सभा में माइक तोड़ दिए जाते हैं! इस देश में जनसभाओं में लाठी-चार्ज होते है; इंसान जख्मी होता है। इस देश में गुलाम आयम सम्मान के साथ रिहाई पा जाता है! यह क्या मेरा देश है? सन् 52, 69, 71 क्या इसी देश की कोई घटना है? हम क्या रफीक, सलाम, मिन्टू, मुस्तफा, मोतीउर. महीउद्दीन के ही वारिस हैं? पता नहीं क्यों तो विश्वास नहीं होता! यह पथराया जनपद मानो बंगलादेश नहीं है।
असल में हम सबको खुद ही अपने पर चाबुक बरसाना चाहिए, वर्ना हमें अक्ल नहीं आएगी। हमारी पीठ पर जंग जम गई है। हमारी आँखें, कान, जुबान को भी जंग लग चुकी है। दिनों-दिन हम सब अचल, अक्षम, अनाथ होते जा रहे हैं। हममें शायद अब वह क्षमता नहीं रही कि आउट ऑफ बाउंड तालिका में गुलाम आयम का भी नाम दर्ज कर दें। इस देश पर अब धीरे-धीरे पाकिस्तान का झंडा लहराने लगेगा। मजारों ने तो काफी अर्से से हरे कपड़ों पर सफेद चाँद-तारे झुला रखे हैं।
अब उनके गुरुठाकुर बड़े गर्व के साथ जेलों से बाहर निकल आएँगे और हूबहू उसी। किस्म की पताका लहराएँगे, क्योंकि अब वक्त आ पहुंचा है। जमात-समर्थित जातीयतावादियों ने तो अर्से तक गद्दी पर ऐशोआराम की जिन्दगी गुज़ारी, अब गुलाम आयम के लिए ऐश-विलास की व्यवस्था करना होगी। वही तो अब देश के विजयी नेता हैं। ऐसी महान विजय भला और किसकी किस्मत में होती है? गुलाम आयम ! को नागरिकता मिल जाने के बाद, मैंने बहुतेरे लोगों से पूछा- 'यह सब क्या हो गया?'
किसी ने कहा, 'जो हुआ, ठीक हुआ!'
किसी ने कहा, 'ऐसा ही होगा, मुझे तो पहले ही पता था।'
किसी ने कहा, 'इससे तो बेहतर था कि उसे विदेश भेज देते।'
किसी ने कहा, 'भई, देश में और भी बड़े-बड़े काम पड़े हैं। यह भी कोई सोचने का विषय है?'
शायद ऐसा ही हो! गुलाम आयम कोई उल्लेखनीय विषय नहीं है। जिसके बारे में इतना सोचा जाए; जिसे जेल या फाँसी देने के ख्याल से परेशान हुआ जाए।
एक अपाहिज मुक्तियोद्धा ने जब हाईकोर्ट की यह राय सुनी, तो वह चीख-चीखकर रो पड़ा, 'अपाहिज होने के बावजूद, मुझे गर्व था कि मैंने देश के लिए जंग की थी! हमलावर दुश्मनों के खिलाफ लड़ा था। लेकिन आज मुझे क्या मिला? हमने क्या इसीलिए संघर्ष किया था? हाय रे नियति!'
न्यायाधीश ने राय दी है, 'गुलाम आयम बंगलादेश का जन्मजात नागरिक है। उसे विदेशी नहीं माना जा सकता। दलाली के अपराध में किसी को नागरिकता के अयोग्य नहीं माना जा सकता। गुलाम आयम को जमात का अमीर नियुक्त करने में संविधान का उल्लंघन बिल्कुल नहीं हुआ है।'
वाह! बंगलादेश! वाह ! तुमने ही एक बार जिस देशद्रोही से उसकी नागरिकता छीन ली थी! आज उसे ही नागरिकता के हार पहना रहे हो? भविष्य में अब तुम शायद उन्हें ही मुक्तियोद्धा का सनद दोगे, जो गुलाम आयम के संगी-साथी थे; जिन लोगों ने, पाकिस्तान का पक्ष लेकर, लाखों-लाखों बंगालियों के घर-मकानों में आग लगा दी, बलात्कार का नंगा नाच दिखाया, इंसानों की गर्दन काट डाली, आँखें निकाल लीं।
हाँ, आज वही लोग अभिनंदित हो रहे हैं, जो आज़ादी के दुश्मन थे; जिन लोगों ने 'पाकिस्तान आदर्श रक्षा फंड' का गठन किया था; जो लोग देश को पूरे नौ महीने तक खून में नहलाते रहे, लाशें बिछाते रहे और विजातीय दोस्तों के साथ जश्न मनाते रहे। वे ही लोग आज देश में नमस्य हैं। आज लगता है कि गणतंत्र के नाम पर ऐसी चरम फॉकीबाज़ी की क्या ज़रूरत थी? जो गणतंत्र, एक नए देश, नए झंडे, नए राष्ट्रीय संगीत को मर्यादा देना नहीं जानता। यह देश मित्र-देश भारत के प्रति दुश्मनी और शत्रु देश पाकिस्तान के प्रति प्रेम से भर उठा है। आज इस देश में खड़े होने के लिए, अंगूठे भर जगह नहीं है; कहीं मुक्त हवा तक नहीं है कि साँस ले सकें। जिस देश की संपूर्ण आजादी ही नहीं लौटी उस देश में अपना आपा नितांत परदेशी-सा लगता है। फिर यह देश किसका है? गुलाम आयम को नागरिकता मिल जाने के बाद, मैं पूरे दम से चीखकर यह कहने को लाचार हूँ कि यह देश मेरा नहीं है। यह देश मेरा नहीं हो सकता। यह देश अब, गुलाम आयम का है! यह देश अब शैतानों, रजाकारों का है! यह देश हत्यारों, खूनी, देशद्रोहियों का है! हाँ, यह देश बेहया और बदमाशों का हो चुका है।
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